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Wednesday, August 7, 2019

राष्ट्रीय एकता पर निबंध । Essay on National Unity in Hindi!! Bharat ki Rastriya Ekta par Hindi Niabandh !


 राष्ट्रीय एकता ( Bharat ki Rastriya Ekta ) National unity of India


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राष्ट्रीय एकता पर निबंध  Essay on National Unity in Hindi!!

    राष्ट्रीय एकता का तात्पर्य हैं- राष्ट्र के विभिन्न घटकों में परस्पर एकता, प्रेम एवं भाईचारे का कायम रहना, भले ही उनमें वैचारिक और आस्थागत असमानता क्यों न हो ।  भारत में कई धर्मों एवं जातियों के लोग रहते हैं, जिनके रहन-सहन एवं आस्था में अन्तर तो है ही, साथ ही उनकी भाषाएँ भी अलग-अलग हैं । इन सबके बावजूद पूरे भारतवर्ष के लोग भारतीयता की जिस भावना से ओत-प्रोत रहते हैं  उसे  राष्ट्रीय एकता का विश्वभर में सर्वोत्तम उदाहरण कहा जा सकता है । हमारा भारत देश राष्ट्रीय एकता की एक मिशाल है । जितनी विभिन्नताएँ हमारे देश में उपलब्ध हैं उतनी शायद ही विश्व के किसी अन्य देश में देखने को मिलें । यहाँ अनेक जातियों व संप्रदायों के लोग, जिनके रहन-सहन, खान-पान व वेश-भूषा पूर्णतया भिन्न हैं, एक साथ निवास करते हैं । सभी राष्ट्रीय एकता के एक सूत्र में पिरोए हुए हैं ।राष्ट्रीय एकता राष्ट्र को सशक्त एवं संगठित बनाती है । राष्ट्रीय एकता ही वह भावना है जो विभिन्न धर्मों, संप्रदायों, जाति, वेश-भूषा, सभ्यता एवं संस्कृति के लोगों को एक सूत्र में पिरोए रखती है । अनेक विभिन्नताओं के उपरांत भी सभी परस्पर मेल-जोल से रहते हैं । जब तक किसी राष्ट्र की एकता सशक्त है तब तक वह राष्ट्र भी सशक्त है ।

     बाह्‌य शक्तियाँ इन परिस्थितियों में उसकी अखंडता व सार्वभौमिकता पर प्रभाव नहीं डाल पाती हैं परंतु जब-जब राष्ट्रीय एकता खंडित होती है तब-तब उसे अनेक कठिनाइयों से जूझना पड़ता है । हम यदि अपने ही इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो हम यही पाते हैं कि जब-जब हमारी राष्ट्रीय एकता कमजोर पड़ी है तब-तब बाह्‌य शक्तियों ने उसका लाभ उठाया है और हमें उनके अधीन रहना पड़ा है । 

     राष्ट्रीय एकता का परिणाम है कि जब कभी भी हमारी एकता को खण्डित करने का प्रयास किया गया, भारत का एक-एक नागरिक सजग होकर ऐसी असामाजिक शक्तियों के विरुद्ध खड़ा दिखाई दिया । रवीन्द्र नाथ टैगोरने कहा है- भारत की एकता तथा चेतना समय की कसौटी पर सही सिद्ध हुई है ।

  

        राष्ट्रीय एकता पर निबंध ।  Essay on National Unity in Hindi!!  Bharat ki   Rastriya Ekta par Hindi Niabandh ! 

     उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीयता के लिए भौगोलिक सीमाएँ, राजनीतिक चेतना और सांस्कृतिक एकबद्धता अनिवार्य होती हैं । यद्यपि प्राचीनकाल में हमारी भौगोलिक सीमाएँ इतनी व्यापक नहीं थी और यहाँ अनेक राज्य स्थापित थे तथापि हमारी संस्कृति और धार्मिक चेतना एक थी। राष्ट्रीय एकता एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया व एक भावना है जो किसी राष्ट्र अथवा देश के लोगों में भाई-चारा अथवा राष्ट्र के प्रति प्रेम एवं अपनत्व का भाव प्रदर्शित करती है । इसके विपरीत हमारी राष्ट्रीय अवचेतना से ही हमें वर्षों की दासता से मुक्ति मिल सकी है । अत: किसी भी राष्ट्र की एकता, अखंडता व सार्वभौमिकता बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय एकता का होना अनिवार्य है । 

     भारत जैसे विकासशील देश के लिए जो वर्षों तक दासत्व का शिकार रहा है वहाँ राष्ट्रीय एकता की संपूर्ण कड़ी का मजबूत होना अति आवश्यक है ताकि भविष्य में उसकी पुनरावृत्ति न हो सके ।

     देश में व्याप्त सांप्रदायिकता, जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रीयता आदि सभी राष्ट्रीय एकता के अवरोधक तत्व हैं । ये सभी अवरोधक तत्व राष्ट्रीय एकता की कड़ी को कमजोर बनाते हैं । इन अवरोधक तत्वों के प्रभाव से ग्रसित लोगों की मानसिकता क्षुद्र होती है जो निजी स्वार्थ के चलते स्वयं को राष्ट्र की प्रमुख धारा से अलग रखते हैं तथा अपने संपर्क में आए अन्य लोगों को भी अलगाववाद के लिए उकसाते हैं । यही आगे चलकर लोगों में विघटन का रूप लेता है जो फिर खून-खराबे, मारकाट व दंगों आदि में परिवर्तित हो जाता है । 

           इन विघटनकारी तत्वों की संख्या जब और अधिक होने लगती है तब ये पूर्ण अलगाव के लिए प्रयास करते हैं । हमारे देश की भौगोलिक भिन्नता जिसमें अनेक क्षेत्रों व उनमें रहने वाली अनेक जातियों व संप्रदायों का समावेश है ये सभी परस्पर राष्ट्रीय एकता को कमजोर बनाते हैं । इस प्रकार ये विभिन्नताएँ जो हमारी संस्कृति का गौरव हैं जब उग्र रूप धारण करती हैं तब यह हमारी एकता और अखंडता की बाधक बन जाती हैं । देश की एकता के लिए आंतरिक अवरोधक तत्वों के अतिरिक्त बाह्‌य शक्तियाँ भी बाधक बनती हैं । जो देश हमारी स्वतंत्रता व प्रगति से ईर्ष्या रखते हैं वे इसे खंडित करने हेतु सदैव प्रयास करते रहते हैं । कश्मीर की हमारी समस्या इन्हीं प्रयासों की उपज है जिससे हमारे देश के कई नवयुवक दिग्भ्रमित होकर राष्ट्र की प्रमुख धारा से अलग हो चुके हैं ।

     

      राष्ट्रीय एकता व इसकी अक्षुण्णता बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि राष्ट्रीय एकता के तत्वों; जैसे हमारी राष्ट्रभाषा, संविधान, राष्ट्रीय चिह्‌नों, राष्ट्रीय पर्व व सामाजिक समानता तथा उसकी उत्कृष्टता पर विशेष ध्यान दें । उन सच्चे व महान देशभक्तों की गाथाओं को उजागर करें जिन्होंने राष्ट्र की स्वतंत्रता व सार्वभौमिकता बनाए रखने के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए । महापुरुषों के आदर्शों पर चलना व उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना भी राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देता है ।

     राष्ट्रीय एकता को संबल प्रदान करने वाले तत्व कम नहीं हैं, बस उन्हें समय-समय पर अपने जीवन में आत्मसात् करने की आवश्यकता है । विभिन्न राष्ट्रीय दिवसों पर होने वाली गोष्ठियाँ, विचार-विमर्श आदि के माध्यम से राष्ट्र की एकता को बल मिलता है ।

     विभिन्न संगीत सम्मेलनों, समवेत् गान, सांस्कृतिक कार्यक्रमों आदि के माध्यम से जनता के बीच एकता को बढ़ावा देनेवाला संदेश जाता है । सबसे बढ़कर आवश्यक यह है कि हम निजी रूप से ऐसा प्रयास जारी रखें जिससे देश की एकता को बल मिले ।

     भारत एक महान, स्वतंत्र एवं प्रगतिशील राष्ट्र है । 

     राष्ट्रीय एकता बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि हम अपनी क्षुद्र मानसिकता से स्वयं को दूर रखें तथा इसमें बाधक समस्त तत्वों का बहिष्कार करें । हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हम चाहे जिस क्षेत्र, प्रांत, जाति या समुदाय के हैं परंतु उससे पूर्व हम भारतीय नागरिक हैं । भारतीयता ही हमारी वास्तविक पहचान है । अत: हम कभी भी ऐसे कृत्य न करें जो हमारे देश के गौरव व उसकी प्रगति में बाधा डालते हों ।

     हम स्वयं अपने राष्ट्रीय प्रतीकों व अपने संविधान का सम्मान करें तथा अपने संपर्क में आने वाले समस्त व्यक्तियों को भी इसके लिंए प्रेरित करें जिससे हमारी राष्ट्रीय एकता युग-युगांतर तक बनी रहे । हम विघटनकारी तत्वों को राष्ट्रीय एकता की मशाल जलाकर ही भस्मीभूत कर सकते हैं । हम एक थे एक हैं और सदा एक बने रहेंगे, जैसे-जैसे यह विश्वास दृढ़ होता जाएगा हमारी राष्ट्रीय एकता त्यों-त्यों मजबूत होती जाएगी ।

     इतिहास के अध्ययन से हमें पता चलता है कि प्राचीनकाल में समूचा भारत एक ही सांस्कृतिक सूत्र में आबद्ध था, किन्तु आन्तरिक दुर्बलता के कारण विदेशी शक्तियों ने हम पर आधिपत्य स्थापित कर लिया । इन विदेशी शक्तियों ने हमारी सभ्यता और संस्कृति को नष्ट करना शुरू  किया जिससे हमारी आस्थाओं एवं धार्मिक मूल्यों का धीरे-धीरे पतन होने लगा !

      राष्ट्रीय एकता परिषद के अधिवेशन में तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री मोरारजी देसाई ने कहा था- ”भारत में 1865 ई से पूर्व कभी साम्प्रदायिक दगे नहीं हुए । यहाँ सदियों से विभिन्न धर्मों के   लोग मिल-जुलकर रहते आए है, किन्तु अंग्रेजों के शासनकाल में यहाँ हिन्दू-मुस्लिम दगे   शुरू हो गए । यह अंग्रेजों की सोची-समझी कूटनीतिक चाल थी और इसका लाभ ब्रिटिश   सरकार ने उठाया । कभी उन्होंने हिन्दुओं का समर्थन किया, तो कभी मुसलमानों का और   कभी ईसाइयों का। अन्त में विभाजन हुआ । अगर हम इस विभाजन को न स्वीकारते, तो   अंग्रेज अपने को बनाए रखते ।

      लगभग एक हजार वर्षों की परतन्त्रता के बाद अनेक संघर्षों व बलिदानों के फलस्वरूप हमें   स्वाधीनता प्राप्त हुई । स्वतन्त्रता प्राप्त करने के बाद हमारी एकता सुदृढ़ तो हुई, परन्तु आज साम्प्रदायिकता, क्षेत्रीयता, जातीयता और भाषागत अनेकता ने पूरे देश को आक्रान्त कर रखा है ।

     आज कभी देशवासी मन्दिर-मस्जिद को लेकर झगड़ पड़ते हैं, तो कभी अंग्रेजी-हिन्दी को लेकर, कभी असोम, महाराष्ट्र जैसे राज्यों से अन्य राज्यवासियों को भगाया जाता है, तो कभी एक ही धर्म के लोग जात-पाँत की बातों पर उलझ पडते हैं ।

     देश में बाबरी मस्जिद गिराए जाने, गोधरा काण्ड, मुजफुफरनगर दगे जैसी स्थितियाँ फिर से न आएँ, इसके लिए साम्प्रदायिक विद्वेष, स्पर्द्धा, ईर्ष्या आदि राष्ट्र विरोधी भावनाओं को अपने मन से दूर रखकर सद्‌भावना का वातावरण कायम रखना आवश्यक है ।

     तभी हम ‘डॉ. एस राधाकृष्णनकी कही गई इस बात को सही साबित कर सकते हैं- भारत ही अकेला देश है, जहाँ मन्दिरों, गिरिजाघरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों और मठों में शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व है ।”  आज देश की राष्ट्रीय एकता को सबसे बड़ा खतरा आतंकवाद से है । आतंकवाद न केवल हमारी, बल्कि सम्पूर्ण विश्व की समस्या है ।

     आतंकवादियों द्वारा कभी मुम्बई को निशाना बनाया जाता है, तो कभी देश की राजधानी दिल्ली को । आज कश्मीर की समस्याएँ आतंकवाद की ही देन हैं ।  पिछले दो दशकों में इस आतंकवाद ने देश के कई राज्यों में अपार क्षति पहुँचाई है । इन सबके अतिरिक्त अलगाववादियों ने भी हमारी एकता को भंग करने का असफल प्रयास किया है ।

      राष्ट्रीय एकता में बाधक अनेक शक्तियों में अलगाव की राजनीति भी एक है । यहाँ के राजनेता वोट बैंक बनाने के लिए कभी अल्पसंख्यकों में अलगाव के बीज बोते हैं, कभी आरक्षण के नाम पर पिछड़े वर्गों को देश की मुख्य धारा से अलग करते हैं, तो कभी किसी विशेष जाति, प्रान्त या भाषा के हिमायती बनकर देश की राष्ट्रीय एकता को खण्डित करने की कोशिश करते हैं ।

     जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा हो, खालिस्तान की माँग हो, असोम या गोरखालैण्ड की पृथकता का आन्दोलन हो इन सबके पीछे वोटबैंक की राजनीति ही दिखाई पड़ती है । इस देश के हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई सभी परस्पर प्रेम से रहना चाहते हैं, लेकिन भ्रष्ट राजनेता उन्हें बाँटकर अपना उल्लू सीधा करने में जुटे रहते हैं । हम जब-जब असंगठित हुए, हमें आर्थिक व राजनीतिक रूप में इसकी कीमत चुकानी पडी । हमारे विचारों में जब-जब संकीर्णता आई, आपस में झगड़े हुए । हमने जब कभी नए विचारों से अपना मुख मोड़ा, हमें हानि ही हुई, हम विदेशी शासन के अधीन हो गए ।” 

     इन समस्याओं के समाधान का उत्तरदायित्व मात्र राजनेताओं अथवा प्रशासनिक अधिकारियों का ही नहीं है, इसके लिए तो सम्पूर्ण जनता को मिल-जुलकर प्रयास करना होगा । इतिहास साक्षी है कि अनेक धर्मों, अनेक जातियों और अनेक भाषाओं वाला यह देश अनेक विसंगतियों के बावजूद सदा एकता के एकसूत्र में बँधा रहा है । यहाँ अनेक जातियों का आगमन हुआ और बे धीरे-धीरे इसकी मूल धारा में विलीन हो गई! उनकी परम्पराएँ, विचारधाराएँ और संस्कृतियाँ इस देश के साथ एक रूप हो गई । भारत की यह विशेषता आज भी ज्यों-की-त्यों बनी हुई है । भारत के नागरिक होने के नाते हमारा कर्तव्य है कि हम इस भावना को नष्ट न होने दे वरन् इसको और अधिक पुष्ट बनाएँ ।ये बातें स्व. प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने अखिल भारतीय राष्ट्रीय एकता सम्मेलन के दौरान कही थीं । सचमुच राष्ट्रीय एकता सशक्त और समृद्ध राष्ट्र की आधारशिला होती है । राष्ट्रीय एकता के छिन्न होने पर देश की स्वतन्त्रता भी अक्षुण्ण नहीं रह पाती ।

     कन्याकुमारी से हिमालय तक और असोम से सिन्ध तक भारत की संस्कृति और धर्म एक थे । यही एकात्मकता हमारी राष्ट्रीय एकता की नींव थी । भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अपनी-अपनी अलग परम्परा, रीति-रिवाज व आस्थाएँ थी, किन्तु समूचा भारत एक सांस्कृतिक सूत्र में आबद्ध था । इसी को अनेकता में एकता एवं विविधता में एकता कहा जाता है और यही पूरी दुनिया में भारत की अलग पहचान स्थापित कर, इसके गौरव को बढाता है । हम जानते हैं कि राष्ट्र की आन्तरिक शान्ति तथा सुव्यवस्था और बाहरी दुश्मनों से रक्षा के लिए राष्ट्रीय एकता परम आवश्यक है । यदि हम भारतवासी किसी कारणवश छिन्न-भिन्न हो गए, तो हमारी पारस्परिक फूट को देखकर अन्य देश हमारी स्वतन्त्रता को हड़पने का प्रयास करेंगे । इस प्रकार, अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा एवं राष्ट्र की उन्नति के लिए भी राष्ट्रीय एकता परम आवश्यक है ।

     यदि हमारा देश संगठित है, तो विश्व पटल पर इसे बड़ी शक्ति बनने से कोई नहीं रोक सकता । हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जो राष्ट्र संगठित होता है, उसे न कोई तोड़ सकता है और न ही कोई उसका कुछ बिगाड़ ही सकता है बह अपनी एकता एवं सामूहिक प्रयास के कारण सदा प्रगति के पथ पर अग्रसर रहता है । 

     कई बार हमारे विरोधी, देश या पैसे के लिए सब कुछ बेच देने वाले कुछ स्वार्थी लोगों ने अराजकता एवं आतंकी कार्यों द्वारा हमारी एकता को भंग करने का असफल प्रयास किया है । अगर इन बिघटनकारी और विध्वंसकारी प्रवृत्तियों पर पूरी तरह से नियन्त्रण नहीं किया गया, तो भारत की एकता और अखण्डता पर खतरा बना ही रहेगा । जब देश में कोई भी दो राष्ट्रीय घटक आपस में संघर्ष करते हैं, तो उसका दुष्परिणाम भी पूरे देश को भुगतना पड़ता है । मामला आरक्षण का हो या अयोध्या के राम मन्दिर का, सबकी गूँज प्रदेश के जन-जीवन को प्रभावित करती है । ऐसे में देश के सभी नागरिकों का कर्तव्य बन जाता है कि वे राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने हेतु तन, मन, धन से समर्पित रहें ।आज आवश्यकता है हम सब देशवासियों को महात्मा गाँधी के इस कथन से प्रेरणा लेकर अपने कर्म पथ पर दृढ़प्रतिज्ञ होकर चलते हुए देश की एकता और अखण्डता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए भारत माता की सेवा में तन-मन-धन से जुट जाने की – ”जब तक हम एकता के सूत्र में बँधे हैं, तब तक मजबूत हैं और जब तक खण्डित हैं, तब तक कमजोर है ।

    आज आवश्यकता है केन्द्रीय सरकार द्वारा राष्ट्रीय एकता परिषद को फिर से सक्रिय करने की, ताकि देशवासी आन्तरिक मतभेदों को भुलाकर आपस में प्रेम-भाईचारे के साथ रह सकें । सारे संचार माध्यमों को भी मिल-जुलकर राष्ट्रीय एकता को बढावा देने में सहयोग करना चाहिए, क्योंकि सिनेमा, टेलीविज़न, अखबार व पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से लोगों में राष्ट्रीय एकता की भावना का संचार प्रभावपूर्ण ढंग से किया जा सकता है । लेखकों व कलाकारों का भी दायित्व बनता है कि वे अपनी रचनाओं व कला के माध्यम से लोगों में राष्ट्रीय एकता की भावना जागृत करें, क्योंकि साहित्य व कला का संसार जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र के बन्धनों से परे होता है । राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए असमानता लाने वाले कानूनों को खत्म किया जाना भी अति आवश्यक है ।


       
      
       



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